वर्तमान में शिक्षा व्यवस्था पर अनेक प्रश्नो एवं परिवर्तन की बौछार हो रही है | आज सर्वाधिक शिकायत का मुद्दा शायद यह है की विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत भी मौलिक चिंतन में तथा विचारपूर्ण निर्णय लेने में प्रायः असफल रहते है | अर्थात उन्हें शिक्षा की सम्पूर्ण अवधि में उन कौशलों में आत्मनिर्भर होने का अभ्यास कभी करवाया नहीं गया होगा जिनका उपयोग कर वे स्वयं का जीवनयापन एक सफल व्यक्ति के रूप में करते हुए अपने परिवार के साथ साथ एवं आनदपूर्ण समाज और राष्ट्र के निर्णय में अपना योगदान दे सके |
अनेक नीतियों अभियानों के बाद भी शिक्षा के साथ ' विद्या या विमुक्तये ' के अर्थ को साकार करने में हम संतोषजनक स्तर पर नहीं है | शिक्षा के वास्तविक अर्थ को समझने के लिए हमे भारतीय जीवनदर्शन में व्याप्त समग्रता को शिक्षा के निष्पादन - मानदंडों का आधार बनाना होगा |
शिक्षा के व्यापक अर्थ पर विचार करे तो यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति को स्वयं के व्यव्हार का निरंतर परिमार्जन करने के लिए मार्गदर्शन प्राप्त होता है | स्वभाविक रूप से शिक्षा की प्रक्रिया के प्रभावी संचालन में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है | वास्तव में प्रत्येक विषय के अधिगम के साथ ही उन विशिष्ट व्यवहारों का विकास किया जाना आवश्यक है जिनके द्वारा वह एक सुसंस्कृत प्रगतिशील समाज का जिम्मेदार सदस्य बन सकता है और ' सर्व भवन्तु सुखित ' के उद्देशय प्राप्ति में अपना योगदान दे सकता है |
प्रिय प्रशिक्षणार्थी एवं शिक्षक साथियो , हम विचार करे शिक्षक प्रशिक्षण का अर्थ मात्र उपाधि प्राप्त करना नहीं है अतः एक चुनौती स्वीकार करे ऐसे शिक्षकीय व्यक्तित्व का निर्माण करने की जो शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक दायित्वों का पालन करते हुए देदीषयमान नक्षत्र की भूमिका का निर्वाहन कर सके
हार्दिक स्नेह शुभकमनाएं ............
. डॉ. (श्रीमती) एकता इंगले (प्राचार्य)
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Our philosophy of education has always been strived on nurturing the values so that an individual can play the positive role in fulfilling the needs of own life as well as society and nation. Thus contribution in making a happy society requires certain skills. These skills can not be earned in a day or two; it is a long term phenomenon.
The question arises that what is the agency to perform this role? The answer comes from all directions … the process of Education is the only way to fulfil the goals to make a progressive and happy society where the basic principle of Bharteey philosophy as 'Sarve Bhavantu Sukhinah can be accomplished in real terms. We the teachers training institutions can become the catalyst to bring a positive and desirable change in the prevailing unsatisfactory conditions .
Dear students and colleagues, let us accept this challenge. The teachers training institution is not only a centre to fulfil the course to achieve the degree but we have to create an environment to nurture the personality of a 'Teacher' which can perform the stellar role .
Dr. Ekta Ingle (Principal)
With best wishes and affection.